Tuesday 12 March 2013

चाहती हूँ यकीन कर लेना ...

'हर सपना साकार हो सकता है '
सचमुच ???
अभी जा कर पूछती हूँ .....
उन माँओं से ....
सत्य का पाठ पढ़ाकर
जीवन संग्राम में उतार आयीं जो
....अपनी संतानों को
और बदले में पाये अस्थि के फूल ...
सत्य की विजय के वादे
असत्य से ....
पूछती हूँ कलावतियों से ....
भलाई का संकल्प लिये
जो उतर पड़ीं समाज की कीचड़ में
नहीं उबर पातीं लेकिन
किसी भी सदी में
उस दलदल से ....
पूछती हूँ उन स्त्रीयों से
जो हस्तांतरित कर दी जाती है
पिता से पति तक
अधिकार विहीन
मर्यादित कर्तव्य में लिपटी
संस्कृति की डोर से
क्या सचमुच हर सपना
साकार हो सकता है ???
चाहती हूँ यकीन कर लेना
इस सपने पर ...
पर नहीं ...
यथार्थ का अट्टाहास
कुछ और ही समझाता है
हर सपना साकार कहाँ हो पाता है !!!
 

18 comments:

  1. यथार्थ सच में बहुत कड़वा ,,,,,
    सुन्दर रचना
    सादर !

    ReplyDelete
  2. मजबूरन यथार्थ के इसी सच्चाई में जीना पड़ता है,,,,

    Recent post: होरी नही सुहाय,

    ReplyDelete
  3. एक कडुवे सच को बयान करती रचना के लिए बधाई

    ReplyDelete
  4. सुंदर रचना
    बधाई

    आग्रह है मेरे ब्लॉग मैं भी सम्मलित हों
    jyoti-khare.blogspot.in

    ReplyDelete
  5. कटु लेकिन सत्य । फिर भी सपने देखने होंगे और उन पर यकीन भी करना होगा । बहुत ही सच्ची सी कविता शिखा जी ।

    ReplyDelete
  6. सुन्दर प्रेरणा दायक अभिव्यक्ति ...........उम्दा पंक्तियां

    ReplyDelete
  7. है तो कडुवा सच ... पर फिर भी सपने को बुझाना तो नहीं होता ... देखना बंद तो नहीं करना होता ...
    गहरी संवेदना लिए रचना ..

    ReplyDelete

  8. दिनांक 14/03/2013 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .
    धन्यवाद!

    ReplyDelete
  9. इस पोस्ट को 'नयी-पुरानी हलचल' में स्थान देने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद

    ReplyDelete
  10. shikha bahut sunder rachna vaise to tumhari rachnaye khoobsurat hi hoti hain ...yathart ka satya to katu hi hai ..bahut sara sach lie hue ye rachna bahut achi lagi mujhe...

    ReplyDelete
  11. बहुत सुन्दर लिखा है.

    ReplyDelete
  12. कटु यथार्थ की बहुत सशक्त अभिव्यक्ति...

    ReplyDelete
  13. सटीक और सार्थक ...
    आप भी पधारो स्वागत है ....


    http://pankajkrsah.blogspot.com

    ReplyDelete
  14. यथार्थ यथार्थ ही होता है,जिसे सहन करना कठिन है

    ReplyDelete
  15. शिखा. बहुत ज्यादा की उम्मीद है आप से. जिस सुर में आपने रचना रची है वो सुर बड़ा छलिया है -धुएं की तरह फ़ैल जाता है जबकि इस विषय को तीर जैसा सुर चाहिए- वेधक और चोट करने वाला.

    ReplyDelete
  16. yatharth ke dharaatal par likhi gayi sarthak rachna...Nari ke peeda ka machan..sudar aur sarthak shabdon men..bahut bahut badhaai is rachna ke liye.

    ReplyDelete
  17. बहुत कड़वा सच ,सशक्त अभिव्यक्ति

    ReplyDelete