नरम गर्म सूरज का गोला
कितना प्यारा कितना भोला
जग सोये, ये फिर भी जागे
देख इसे अँधियारा भागे।
ऊषा की लाली बिखराये
ओस की बूँदों को पिघलाये
दूर क्षितिज से बढ़ता आये
पर्वत-पर्वत चढ़ता जाये।
माथे चढ़ जग के मुस्काये
भांति-भांति के खेल दिखाये
सर्दी में नरमी जतलाये
गर्मी में अग्नि बरसाये।
संध्या तक ये चलकर जाये
नव-रंगों की छटा सजाये
रात के आने से कुछ पहले
जाते दिन को विदा कराये।
उजियारों के लेकर साये
दूर देस फिर सैर को जाये
कल आएगा रवि का टोला
फिर खोले किरणों का झोला।
bahut sundar man moh lene wali baal kavita ..padhkar man aanand se bhar gaya :-)
ReplyDeleteमेरा लिखा एवं गाया हुआ पहला भजन ..आपकी प्रतिक्रिया चाहती हूँ ब्लॉग पर आपका स्वागत है
Os ki boond: गिरधर से पयोधर...
बहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteसादर
लाजबाब,मनमोहक सुंदर बालगीत,,,,
ReplyDeleteRecent post: रंग,
बहुत सुन्दर बालगीत | आभार
ReplyDeletehttps://www.1and1.com/login
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Tamasha-E-Zindagi
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Very nice! bal man ko chhuti sundar kavita. bachpan kii yad dila di.
ReplyDelete;
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ek nazar idhar bhi:
KAVYA SUDHA (काव्य सुधा): जमी हुई नदी
बहुत सुन्दर रचना .. सूरज की दास्तां कह दी ..
ReplyDeleteबच्चों को भी पसंद आएगी ये रचना ...
श्रृष्टि का अनुपम वर्णन सूरज की दिनचर्या बतलाती .
ReplyDeleteवाह .... बहुत प्यारी रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति :)
ReplyDeleteबहुत खूब आपके भावो का एक दम सटीक आकलन करती रचना
ReplyDeleteआज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
तुम मुझ पर ऐतबार करो ।
शिखा जी आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ। बहुत सुदर और सार्थक सृजन कार्य है आपका ...यहाँ आकर बहुत कुछ नया पढने का मिला। बहुत बहुत आभार आपका।
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