देखो! रोज़ की तरह
उतर आयी है
सुबह की लाली
मेरे कपोलों पर
महक उठी हैं हवायें
फिर से ...
छू कर मन के भाव
पारिजात के फूल
सजाये बैठे हैं रंगोली
पंछी भी जुटा रहे हैं
तिनके नये सिरे से
सजाने को नीड़
सुनो! कोयल ने अभी-अभी
पुकारा हमारा नाम
अच्छा,कहो तो...
आज फिर लपेट लूँ
चंपा की वेणी अपने जूडे में
या सजा लूँ लटों में
महकता गुलाब
ओह! कुछ तो कहो
याद करो ... तुमने ही बाँधा था मुझे
प्रेम के ढ़ाई अक्षर में
माना समय के साथ दौड़ते
तुम हो गये हो
परिष्कृत और विराट
उतर आयी है
सुबह की लाली
मेरे कपोलों पर
महक उठी हैं हवायें
फिर से ...
छू कर मन के भाव
पारिजात के फूल
सजाये बैठे हैं रंगोली
पंछी भी जुटा रहे हैं
तिनके नये सिरे से
सजाने को नीड़
सुनो! कोयल ने अभी-अभी
पुकारा हमारा नाम
अच्छा,कहो तो...
आज फिर लपेट लूँ
चंपा की वेणी अपने जूडे में
या सजा लूँ लटों में
महकता गुलाब
ओह! कुछ तो कहो
याद करो ... तुमने ही बाँधा था मुझे
प्रेम के ढ़ाई अक्षर में
माना समय के साथ दौड़ते
तुम हो गये हो
परिष्कृत और विराट