मैं बीत गयी इक और साल ...
लम्हे-लम्हे कुछ ठहरी सी
लम्हा-लम्हा ही बढ़ी चली
विकट रहा समय का जाल
मैं बीत गयी इक और साल ...
रोयी तो मुस्कायी भी
सपनों की परछाई सी
अभी सुकूं अभी बेहाल
मैं बीत गयी इक और साल ...
पलकें ना झपकाई थीं
रात कहाँ मुरझाई थी
जलना जिसे, बुझी मशाल
मैं बीत गयी इक और साल ...
हवा पे जैसे महक बसी
धूप-छाँव सम चंचल सी
हर लम्हा अजब ही चाल
मैं बीत गयी इक और साल ...
पेशानी गहराई सी
उम्र की ज़द में आयी सी
गया समय हुआ कंकाल
मैं बीत गयी इक और साल ...
लम्हे-लम्हे कुछ ठहरी सी
लम्हा-लम्हा ही बढ़ी चली
विकट रहा समय का जाल
मैं बीत गयी इक और साल ...
रोयी तो मुस्कायी भी
सपनों की परछाई सी
अभी सुकूं अभी बेहाल
मैं बीत गयी इक और साल ...
पलकें ना झपकाई थीं
रात कहाँ मुरझाई थी
जलना जिसे, बुझी मशाल
मैं बीत गयी इक और साल ...
हवा पे जैसे महक बसी
धूप-छाँव सम चंचल सी
हर लम्हा अजब ही चाल
मैं बीत गयी इक और साल ...
पेशानी गहराई सी
उम्र की ज़द में आयी सी
गया समय हुआ कंकाल
मैं बीत गयी इक और साल ...
समय बड़ा बलवान .....सुन्दर भावपूर्ण रचना
ReplyDeleteसच कहा ही समय तो वैसे ही रहता है... इंसान बीतता है ...
ReplyDeleteनव वर्ष मंगलमय हो ...
सोलह आने सच्च्ी और खरी बात। समय तो जस का तस है, सिर्फ इंसान ही गुजरता जाता है।
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति
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ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "भूली-बिसरी सी गलियाँ - 9 “ , मे आप के ब्लॉग को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
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भारत सरकार ने पिछड़े और कमजोर वर्ग और मध्यम वर्ग के लोगो कि जरूरतों को ध्यान में रखकर इन योजनाओ को आरम्भ किया हैं! Sarkari yojana Form योजनाओ को सरकार द्वारा आम आदमी तक पंहुचाने का प्रयास किया जा रहा हैं!
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