Wednesday, 6 March 2013

एक गिरह.....

मुहब्बत के कुछ फूल
बड़ी हसरत से
दामन में बाँधे थे
वो कोना ....आंचल का
आज भी मुठ्ठी में दबाया है
जमाने की तपिश
दर्द की गिरफ्त
तुम्हारी तल्खियों से
अभी तलक इसे बचाया है
ज़िन्दगी के मिजाज़ ने
तोड़ डाले ....भरम सारे
न जाने क्यूँ ....
बस यही एक गिरह
खुल न सकी
मुरझाया ही सही ...
अभी तलक ....इक सपना
हथेली पे सजाया है

19 comments:

  1. बहुत उम्दा अभिव्यक्ति,,,शिखा जी

    Recent post: रंग,

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  2. bahut sunder abhivyakti shikha...pyaar bhi ,dard bhi..,sehensheelta bhi ...aur yaad bhi sab kuch hai is me...bahut bahut sunder

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  3. ना जाने क्यूँ बस यही एक गिरह खुल न सकी ..एक सपना अभी तक हथेली पे सजाया है ...बहुत सुन्दर प्रस्तुति शिखा :-)

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  4. मेरी नई कविता पर आपकी प्रतिक्रिया चाहती हूँ Os ki boond: सिरफिरा फूल ...

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  5. आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति आज के ब्लॉग बुलेटिन पर |

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    1. रचना को चुनने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद

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  6. मुहब्बत के ये फूल कभी मुरझाएंगे नहीं ... बस खुशबू ही देंगे ...
    हथेली के सपने कभी तो पूरे होते हैं ...

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  7. बहुत सुन्दर प्रस्तुति शिखा जी !
    आप भी मेरे ब्लॉग का अनुशरण करें ,ख़ुशी होगी
    latest postअहम् का गुलाम (भाग एक )
    latest post होली

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  8. वाह बहुत खूबसूरती से रिश्तों की कशमकश बयान की है आपने। बहुत खूबसूरत और रूमानी नज़म। हर लफ्ज़ तराशा हुआ। पढ़ कर दिल खुश हो गया।।बहुत बहुत बधाई

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  9. अच्छा है जो यह गिरह नही खुली नही तो एक बार फिर दर्द बह उठता ......बहुत सुंदर रचना

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  10. रचना को चुनने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद

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  11. बहुत खूबसूरत, तुम्हारी तल्खियों से अभी तक बचाया है. बहुत अच्छे भाव.
    नीरज'नीर'
    KAVYA SUDHA (काव्य सुधा)

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  12. BEAUTIFUL LINES WITH EMOTIONS AND FEELINGS

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  13. वाह ... बहुत खूब

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  14. Umda bhao,mohabbat ke bakhan me lajawab rachna...
    Sadar

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  15. बहुत कोमल प्रस्तुति

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  16. उदास कर देने वाली रचना.

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