Friday 1 March 2013

यादें ...... कभी हंसातीं कभी रुलातीं ......समय की रेत पर छोड़े जा रही हैं अपने निशान



अनमनी और अजान
अवसाद में ...घिरी हैरान
कभी अंधेरों में ढूँढ़ती
खुद अपनी ...खोयी पहचान
सिकुड़ी सूखे पातों सी
गुज़री तंग गलियों से
दीवारों पे बिखरी जैसे
परछाई का देती भान
खुशबू महकाती रहीं
अंतस के ...हरेक कोण 
भेद कभी विषाद-चक्र
भर गयीं ...जीवन में प्राण

रुलाती रहीं
हंसाती रहीं
धुन पुरानी
गुनगुनाती रहीं

पहेलियों में अकसर ये
समझाती रहीं ...
जग का विधान
रंग कोई भी सजा हो
रूप चाहे जो धरा हो
यादें छोडती चल रहीं
समय-सिन्धु की रेत पर ...
अपने पाँव के निशान

14 comments:

  1. बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति,,,,बधाई शिखा जी,,,

    RECENT POST: पिता.

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  2. VERY NICE LINES WITH GREAT EMOTIONS AND FEELINGS

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  3. आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (02-03-2013) के चर्चा मंच 1172 पर भी होगी. सूचनार्थ

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    1. बहुत-बहुत शुक्रिया अरुण जी .....

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  4. कितनी परिक्रमा कर लो निशाँ मिटाये नही मिटते

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  5. समय-सिन्धु की रेत पर
    पड़े पैरों के निशां
    खूबसूरत रचना
    साधुवाद

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  6. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति है ......
    सादर , आपकी बहतरीन प्रस्तुती

    आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
    पृथिवी (कौन सुनेगा मेरा दर्द ) ?

    ये कैसी मोहब्बत है

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  7. यादों की सुन्दर अभिव्यक्ति | सुन्दर रचना हेतु बहुत बहुत बधाईयाँ सम्मानित कवियत्री जी |

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  8. खूबसूरत रचना शिखा जी ...

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  9. जीवन विषद चक्र में ना फंसे और प्राण उर्जा संचालित होती रहे यही प्रयास होना चाहिये.

    सार्थक प्रस्तुति.

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  10. यादों के निशान तो रहते हैं हमेशा ... पर ये खुशी का मौजू बने न की गम का समुन्दर ...

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  11. अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आना

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  12. सुन्दर रचना हेतु बहुत बहुत बधाईयाँ

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  13. यादों के निशाँ मिटाए नहीं मिटते।शिखा बहुत सुंदर लिखा।
    जीवन को महकती और कभी थकाती यादें ...
    जीवन देती और कभी ले लेती यादें।
    अवसादों सी बहती जाती .......
    पानी के साथ घोर पश्चाताप सी यादें।।।

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