Thursday 26 September 2013

एक कविता लिखनी है...


शब्द ...गहरे अर्थों वाले
भाव ...कुछ मनचले से
श्वास भर समीर ......चंचल महकी
सफेद चंपा ......कुछ पत्तियाँ पीली
एक राग मल्हार
एक पूस की रात
घास ...तितलियाँ
बत्तख ...मछलियाँ
फूलों के रंग ...वसंत का मन
तड़प ...थोड़ी चुभन
स्मृति की धडकन
एक माचिस आग
एक मुठ्ठी राख
एक टुकड़ा धूप
चाँद का रुपहला रूप
सब बाँधा है आँचल में
और हाँ ...एक सितारा
बस एक ...अपने नाम का
टाँका है अपने गगन में

रुको ! कुछ स्वार्थ भी भर लूँ
.....संवेदना के भीतर
एक कविता जो लिखनी है मुझे ...
अपने ऊपर- 
 

Wednesday 4 September 2013

सनद

सितारे जड़े आँचल में
चाँद सा चेहरा किया
और अन्तरिक्ष की डोर
थमा दी मेरे हाथ 
अब घिरी हूँ मैं ग्रहों से
अपनी धुरी पे नाचती
न भीतर न बाहर
परिधि की लकीर भर 
....दुनिया मेरे पास

नहीं ...बेवजह न था
सनद में लिखना तुम्हारा
आकाश मेरे नाम