आज मद में चूर है
कल रोयेगा ज़ार-ज़ार
धरती के आंचल को यूँ
ना कर तू तार-तार
पर्वत-शिलायें कर देगीं
अहम के टुकड़े हज़ार
सागर भी लील जायेगा
घमंड का कारोबार
मरुभूमि के व्यंग का
तब होगा कोई जवाब ?
नागफनी के फूलों से
कब सजे किसी के ख्वाब !
सूरज का अट्टाहास जब
भेदेगा तेरे कर्ण
काँच से चुभ जायेगें
रेत के भी तृण
चांदनी भी मैली धूसर
आग ही बरसायेगी
उन्मत्त वायु प्रचंड तरंगें
तन-मन झुलसा जायेगीं
सूखे जल-प्रवाह से
कैसे बुझेगी प्यास ?
ठूँठ हुये तट-बंधों पर
कब तक पालेगा आस ?
धरती का रुदन ही फिर
बन जायेगा श्राप
बस पीड़ा संग होगी तेरे
और होगा संताप
कह पायेगा जीत इसको
जब ख़ाली होगें हाथ !
सन्नाटों की बस्ती में
फिर रोती होगी तान
मत कर कोशिश बनने की तू
जगत-पिता भगवान
कर ले जीवित मन में बस
एक सच्चा इंसान .