यात्रा ...भोर तक
चन्द्र खींचता रात की बग्घी
तारे अपलक ताक रहे थे
ढली हुई पलकों में सज के
स्वप्न सलोने झाँक रहे थे.
मंद-मंद विहसित बयार थी
कुसुम सुगंधी टाँक रहे थे
चन्द्र-प्रभा के घिरते बादल
रजत-चदरिया ढांक रहे थे.
अर्ध-निद्रा में खोयी वसुधा
निशि-चक क्षिति लाँघ रहे थे
पार क्षितिज ऊषा के पंछी
उजला रस्ता नाप रहे थे.
आह ! पहुँच निकट भोर के द्वारे
रात के चक्के हाँफ रहे थे
मयंक स्वेद-कणों के मनके
पंखुरियों पे काँप रहे थे.
किरणें आरूढ़ काल के रथ पे
देव-सूर्य अश्व हांक रहे थे
अहा ! स्वागत में प्रभात के
अंबर रश्मियाँ तान रहे थे.
कुछ ही पल थे शेष विहान में
दिश पूरब खग आँक रहे थे
उजली किरणों के स्वागत में
पंकज पांख पसार रहे थे .
bahut sunder rachna
ReplyDeleteप्रभात का सुन्दर चित्रण.
ReplyDeleteबधाई हो आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति आज के ब्लॉग बुलेटिन पर प्रकशित की गई है | सूचनार्थ धन्यवाद |
ReplyDeleteबहुत-बहुत शुक्रिया
Deletebahut sunder rachna hai shikha.bhaut sambhal ke shabdon ka chayan hua hai aur bahut sunder varnan prabhat ka/....esa bhi likh leti hain aap ..bahut acha laga
ReplyDeleteRaat se subah ki taraf badhti behad sundar rachna... badhai.
ReplyDeleteरात से भोर तक का सफर ... पहले रात की मधुर क्षत फिर किरणों का उजाला ...
ReplyDeleteअनुपम शब्दों में बाँधा है पूरे सफर को ....
बहुत उम्दा भोर का सुंदर चित्रण,,
ReplyDeleteRecent Post: सर्वोत्तम कृषक पुरस्कार,
वाह....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर....
आह ! पहुँच निकट भोर के द्वारे
रात के चक्के हाँफ रहे थे
लगा केनवास पर की गयी कोई चित्रकारी हो...
अनु
Behtreen..... Umda Bhav
ReplyDeleteचन्द्र-प्रभा से उजली किरणों तक का सुन्दर स्वागत ...बहुत खूबसूरत रचना ... शुभकामनाये
ReplyDeleteशानदार बहुत खूब
ReplyDeleteबहुत सुंदर भावनायें और शब्द भी ...बेह्तरीन अभिव्यक्ति !शुभकामनायें.
ReplyDeleteआपका ब्लॉग देखा मैने और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.
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अहा ! स्वागत में प्रभात के
ReplyDeleteअंबर रश्मियाँ तान रहे थे.
कुछ ही पल थे शेष विहान में
दिश पूरब खग आँक रहे थे
उजली किरणों के स्वागत में
पंकज पांख पसार रहे थे-बहुत सुन्दर भाव
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रात्रि और भोर दोनों को अच्छा समेटा आपने!
ReplyDeleteप्रकृति का खूबसूरत चित्रण
ReplyDeleteकुदरत की खूबसूरती में आपके सुंदर शब्दों ने
ReplyDeleteरंग भर दिए ....
शुभकामनायें!
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (24-03-2013) के चर्चा मंच 1193 पर भी होगी. सूचनार्थ
ReplyDeleteरचना के चयन के लिए बहुत-बहुत आभार
Deleteअद्भुत सौंदर्य शब्दों में ....कल्पना में भी .....!!!!!
ReplyDeletewaah...ek lambe arse baad itni bhavpoorna kavita padhne ko mili..man prasann ho gaya...behad shaandar rachna..bahut bahut badhai..lajawaab kar diya apne.
ReplyDeleteશિખા : कहाँ हो....? लंबा गेप हो गया...!!
ReplyDeleteउत्कृष्ट प्रस्तुति !!!!
ReplyDeleteचन्द्र खींचता रात की बग्घी
ReplyDeleteतारे अपलक ताक रहे थे
ढली हुई पलकों में सज के
स्वप्न सलोने झाँक रहे थे
तुकांत कविताएँ मुझे हमेशा से प्रिय रही हैं और इन पंक्तियों को पढ़कर तो आनंद आ गया ।
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर! अप्रतिम! बहुत बहुत बधाई!
ReplyDeleteपिछले २ सालों की तरह इस साल भी ब्लॉग बुलेटिन पर रश्मि प्रभा जी प्रस्तुत कर रही है अवलोकन २०१३ !!
ReplyDeleteकई भागो में छपने वाली इस ख़ास बुलेटिन के अंतर्गत आपको सन २०१३ की कुछ चुनिन्दा पोस्टो को दोबारा पढने का मौका मिलेगा !
ब्लॉग बुलेटिन इस खास संस्करण के अंतर्गत आज की बुलेटिन प्रतिभाओं की कमी नहीं 2013 (5) मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
मेरी रचना को इस योग्य समझा ....आपका बहुत-बहुत आभार
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