छप्पर की दरारों से ....
चुपचाप झांकता आया था
नंगे पाँव फर्श पे बैठा उकडूं
फिर थककर ...
खाट पे उंघियाया था
रेंगा था कुछ दूर तलक भी
दीवारों के साये-साये
कस कर थामे रहा जिगर
फिसलन कोई आये-जाये
बिन कोयला दहकाए भाँडे
फूटी हांड़ी घिसी परात
गोया पकी रसोई में
बची रही कोयले की आंच
आधी खुली सुराही पे
लटका था कुछ देर तलक
बूंद-बूंद बतियाया जैसे
सागर पीता पलक-पलक
एक धूप का पुर्ज़ा कल
अपनी निशानी छोड़ गया
सीली हुई दीवारों पर
उजली कहानी छोड़ गया
बहुत ही सुन्दर काव्य रचना,आभार.
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन सुंदर रचना !!!के लिए बधाई शिखा जी,,,
ReplyDeleteRECENT POST: जुल्म
શિખા : रचना तो अच्छी बन पड़ी है पर मुझे अंदेशा है की शायद कहीं 'क्राफ्ट' प्रस्तुति पर हावी हो गया है. सोचना.अगर मैं गलत हूँ तो सब से अधिक खुशी मुझे ही होगी.
ReplyDeleteधूप का ये पुर्जा ही शंक्ति का केन्द्र है ...
ReplyDeleteबहुत उम्दा भाव ...
बहुत ही सुन्दर ..सजीव..सरस चित्रण ...सलोनी प्रस्तुति
ReplyDeleteआपको नव संवत 2070 की हार्दिक शुभ कामनाएँ!
ReplyDeleteआज 11/04/2013 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की गयी हैं. आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .
धन्यवाद!
बहुत सुन्दर.....
ReplyDeleteकितनी गर्माहट भर जाता है धूप का एक पुर्ज़ा.....
अनु
सुन्दर अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteLATEST POSTसपना और तुम
बहुत सुन्दर.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्यारी रचना ...
ReplyDeleteसुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति . हार्दिक आभार नवसंवत्सर की बहुत बहुत शुभकामनायें हम हिंदी चिट्ठाकार हैं
ReplyDeleteBHARTIY NARI
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर! शायद मेरे पास शब्द नहीं हैं इस रचना की प्रशंसा के लिए। आपका आभार!
ReplyDelete"एक धूप का पुर्ज़ा कल
ReplyDeleteअपनी निशानी छोड़ गया
सीली हुई दीवारों पर
उजली कहानी छोड़ गया"
आपकी यह अप्रतिम् रचना निर्झर टाइम्स पर लिंक की गई है। कृपया http://nirjhar-times.blogspot.com पर अवलोकन करें।आपका सुझाव एवं प्रतिक्रिया सादर आमंत्रित है।
ReplyDeleteबहुत प्यारी रचना शिखा जी!
ReplyDeleteधूप का एक टुकड़ा सीली दीवारों के लिए कितनी आस भरी कहानी छोड़ गया होगा..... :)
~सादर!!!
सुन्दर वर्णन
ReplyDeleteधूप का पुर्जा रुके शब्दों में रवानी भर गया !
ReplyDeleteसभी सुधि-जनों का बहुत-बहुत धन्यवाद ....
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