Sunday 7 April 2013

धूप का पुर्ज़ा

छप्पर की दरारों से ....
चुपचाप झांकता आया था
नंगे पाँव फर्श पे बैठा उकडूं
फिर थककर ...
खाट पे उंघियाया था
रेंगा था कुछ दूर तलक भी
दीवारों के साये-साये
कस कर थामे रहा जिगर
फिसलन कोई आये-जाये
बिन कोयला दहकाए भाँडे
फूटी हांड़ी घिसी परात
गोया पकी रसोई में
बची रही कोयले की आंच
आधी खुली सुराही पे
लटका था कुछ देर तलक
बूंद-बूंद बतियाया जैसे
सागर पीता पलक-पलक
एक धूप का पुर्ज़ा कल
अपनी निशानी छोड़ गया
सीली हुई दीवारों पर
उजली कहानी छोड़ गया

19 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर काव्य रचना,आभार.

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  2. बहुत बेहतरीन सुंदर रचना !!!के लिए बधाई शिखा जी,,,

    RECENT POST: जुल्म

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  3. શિખા : रचना तो अच्छी बन पड़ी है पर मुझे अंदेशा है की शायद कहीं 'क्राफ्ट' प्रस्तुति पर हावी हो गया है. सोचना.अगर मैं गलत हूँ तो सब से अधिक खुशी मुझे ही होगी.

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  4. धूप का ये पुर्जा ही शंक्ति का केन्द्र है ...
    बहुत उम्दा भाव ...

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  5. बहुत ही सुन्दर ..सजीव..सरस चित्रण ...सलोनी प्रस्तुति

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  6. आपको नव संवत 2070 की हार्दिक शुभ कामनाएँ!

    आज 11/04/2013 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की गयी हैं. आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  7. बहुत सुन्दर.....
    कितनी गर्माहट भर जाता है धूप का एक पुर्ज़ा.....

    अनु

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  8. बहुत सुन्दर प्यारी रचना ...

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  9. सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति . हार्दिक आभार नवसंवत्सर की बहुत बहुत शुभकामनायें हम हिंदी चिट्ठाकार हैं

    BHARTIY NARI

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  10. This comment has been removed by the author.

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  11. बहुत सुन्दर! शायद मेरे पास शब्द नहीं हैं इस रचना की प्रशंसा के लिए। आपका आभार!

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  12. "एक धूप का पुर्ज़ा कल
    अपनी निशानी छोड़ गया
    सीली हुई दीवारों पर
    उजली कहानी छोड़ गया"

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  13. आपकी यह अप्रतिम् रचना निर्झर टाइम्स पर लिंक की गई है। कृपया http://nirjhar-times.blogspot.com पर अवलोकन करें।आपका सुझाव एवं प्रतिक्रिया सादर आमंत्रित है।

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  14. बहुत प्यारी रचना शिखा जी!
    धूप का एक टुकड़ा सीली दीवारों के लिए कितनी आस भरी कहानी छोड़ गया होगा..... :)
    ~सादर!!!

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  15. सुन्दर वर्णन

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  16. धूप का पुर्जा रुके शब्दों में रवानी भर गया !

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  17. सभी सुधि-जनों का बहुत-बहुत धन्यवाद ....

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