संबंधों के रेशे
कुछ मुलायम कुछ चुभते से
शून्य से हो के शुरू
नित नये समीकरणों से गुज़रते
पहुँचना चाहते थे
जहाँ हम दोनों हों समान हक़दार
संबंधों के रेशे
कुछ मुलायम कुछ चुभते से
सहेज कर पिरोते ताना-बाना
सरल से जटिल की ओर
बुनना चाहते थे बूटे
जिनमें रंग सभी हों चमकदार
संबंधों के रेशे
कुछ मुलायम कुछ चुभते से
अहम के आकड़ों में
रह गये उलझे ...घायल
टूटे ताने-बानों में
बिखरे बूटों को समेटते
रोज़ बदल रहे हैं
तुम्हारा और मेरा किरदार
दोनों किरदार आपसी समझ से रहें तभी पनपते हैं संबंधों के रेशे ...
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति,भावपूर्ण पंक्तियाँ ...!
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RECENT POST -: हम पंछी थे एक डाल के.
.....
बहुत ख़याल रख के अहं को कोई किरदार निभाने से रोक कर रखना होता है. अति सुन्दर.
ReplyDeleteजहीन और दिल को छुते एहसास
ReplyDeleteआज 28/12/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक है http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद!
सार्थक रचना शिखा जी
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका !
सुंदर !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (29-12-2013) को "शक़ ना करो....रविवारीय चर्चा मंच....चर्चा अंक:1476" पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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नव वर्ष की अग्रिम हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!!
- ई॰ राहुल मिश्रा
Behtreen.....
ReplyDeleteसमबन्ध ....अहम् के आंकड़ों में रह गए उलझे .....रोज बदलते हैं ,,,,मेरे और तुम्हारे किरदार. एक सार्थक रचना उलझे रिश्तों को बदलने की , सुलझाने की अभिव्यक्ति करती अच्छी रचना.
ReplyDeleteसंबंधों के रेशे होते हैं बहुत मुलायम .. आसानी से चटक जाते हैं , सुन्दर प्रस्तुति ..
ReplyDeleteसंबंधो का सुंदर शब्द रूप :) शुभकामनायें :)
ReplyDeleteभावपूर्ण अभिव्यक्ति ......
ReplyDeleteसंबंधों के रेशे जुड़ते-तुड़ते ताने-बाने बुनते बस यूँ ही... टिके रहते हैं. सुन्दर रचना, बधाई.
ReplyDeleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति। संबंधों के रेशे सुलझ जाते हैं अक्सर समझदारी और संयम से।
ReplyDeletewaah..waah..adhbhud kavya lekhan hai aapka..rishton ka aisa tana-baanaa sabkuch apna sa lagta hai..bahut bahut badhai is anupam kriti ke liye.
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