सुनाती हैं कहानियाँ
यहाँ की वहाँ की
धरती आसमां की
या फिर ...होते हैं वो
छूटे किनारे !!
....कौन जाने
सच है क्या ....और क्या छलावे .
दे रखी है ड़ोर
पराये हाथों में
नाचती हैं इशारों पर
या फिर ....होते हैं मजबूर
नचाने वाले !!
....कौन जाने
सच है क्या ....और क्या छलावे .
थिरकती मचलती हैं
सज-धज के संग
बेपरवाह बेमोल
या फिर ...होते हैं ये
तिनके से सहारे
....कौन जाने
सच है क्या ....और क्या छलावे .
ये किस्से ये कहानी
वो इशारों की रवानी
थिरकना मचलना
उलझना ....उलझाना
मनमर्ज़ी है ...या फिर
दुनियावी दिखावे
....कौन जाने
सच है क्या ....और क्या छलावे .
वाह.....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...
गहरी बात!!!
अनु
वाह!!!शानदार,उम्दा प्रस्तुति,,,
ReplyDeleteRECENT POST: हमने गजल पढी, (150 वीं पोस्ट )
कठपुतलियां----
ReplyDeleteसहजता से कही गयी गहन अनुभूति
मार्मिक और भावपूर्ण रचना
सादर
आग्रह है मेरे ब्लॉग का भी अनुसरण करें
गुलमोहर------
नाचती इशारों पर ..या नचाने वाले मजबूर ....बहुत सुंदर .बहुत खूब !
ReplyDeleteया फिर होते हैं यह
ReplyDeleteतिनके से सहारे......
वाह ....बहोत सुन्दर.....!!!!
बहुत ही खुबसूरत जीवन की व्याख्या
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार(8-6-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
ReplyDeleteसूचनार्थ!
शुक्रिया .....बहुत-बहुत आभार
Deleteसूत्रधार का क्रीड़ाकौतुक - नाच चलता रहे ,सारी डोरियाँ उसके हाथ.कठपुतलियाँ दिखायेंगी सारे भाव-अनुभाव !
ReplyDeleteबहुत खुबसुरत रचना। लाजवाब
ReplyDeleteवाह बहुत गहरे भाव. सुंदर.
ReplyDeleteआपने लिखा....हमने पढ़ा
ReplyDeleteऔर लोग भी पढ़ें;
इसलिए कल 09/06/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
धन्यवाद!
बहुत-बहुत शुक्रिया ...........आभार
Deleteबहुत सुन्दर.
ReplyDeleteKaun Jane Sach Hai Kya,Kya Hai Chhalawe... Bilkul Sahi.
ReplyDeleteSadar
उमा दारु जोषित की नाईं, सबह नचावत राम गोसांई.
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति.
बहुत सुंदर। कठपुतलियाँ बेरंग, निर्जीव होकर भी एक बेहद सुंदर और सुहाना संसार रचती हैं हमारे सामने।
ReplyDeleteशिखा : अरे दर्शनशास्त्र....!! सुंदर. :)
ReplyDeleteसच और छलावे में बस विश्वास का अंतर होता है ... छलावा ज्यादा देर तक नहीं रह पाता ...
ReplyDeleteगहरे भाव लिए रचना ...