Thursday 25 April 2013

आँसू ...

आँसू ..... एक सैलाब
हदों में उफनता बिलखता
या सेहरा में ....भटका समंदर
पत्थर पे सर पटकना
लहरों का बिखरना
सब है देखा-भाला

वेदना ....सुलगी लकड़ी
भीगे ख्यालों से नम
न जलती है ...न बुझ पाती
गीली लकड़ी का जलना
पल-पल सुलगना
सब है देखा-भाला

दिलासा ....महीन शब्द 
महज़ एक उलझन 
सुलझाओ तो ...हो जाते हैं तार-तार 
अर्थ हो गये हैं ग़ुम 
रिश्तों का चेहरा 
सब है देखा-भाला 

4 comments:

  1. यशोदा जी आपका बहुत-बहुत धन्यवाद आपने रचना को मान दिया
    शुभ-कामनायें

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  2. बहुत ही कोमल, भावपूर्ण रचना..

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