Sunday 24 February 2013

वो हलकी फुहार ....मंद समीर और फिर इन्द्रधनुष के रंग ......सब कुछ इतना प्यारा था कि बरबस ही कुछ पंक्तियाँ मुख से निकल पडीं ................


छू कर हौले से गुज़रे
हवाओं के पर
गुलमोहर से बरसे पड़े
फूल अंजुलि भर

पात-पात सरसराये
मोती गये फिसल
मुख पे रखते चुम्बन
हँसते रहे चंचल

बुंदियाँ रुक-रुक बरसीं
छम-छम ...छमा-छम
इन्द्रधनुष की रंगत
मेघ-दलों का मन

बदरा के पीछे से झाँके
ढली धूप के रंग
स्वर्ण-किरन यूँ चमकीं
नदिया का दर्पण

बयार सुरभित रागिनी
सन सन ....सनन सनन .....
सुमन-कलिका महक उठीं 
वसुधा हुई चंदन

तान लिए मल्हार की 
बजते मन मृदंग
पुलकित उर गूंज उठी 
प्रीत की सरगम

8 comments:

  1. वाह! बहुत सुन्दर.

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  2. बहुत अच्छी रचना आन्नद मय करती रचना

    मेरी नई रचना

    ये कैसी मोहब्बत है

    खुशबू

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  3. bahut hi khoobsurat rachna shikha ..free flowing ..ekdum behte paani ki tarah ...badhai :-)

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  4. शुक्रिया पंखु ........दिल से कहती हो इसलिए बहुत अच्छी लगती हैं आपकी बात

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  5. हिन्दी ब्लॉग जगत में आपका हार्दिक स्वागत है।
    आपकी यह पोस्ट बहुत अच्छी लगी।


    सादर

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  6. ब्लॉग पर आने और रचना के बारे में अपने विचार रखने के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया
    आपके सुझाव के अनुसार सेटिंग बदल दी हैं ...शुक्रिया

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  7. ...बहुत सुन्दर शब्दों में प्रकृति का वर्णन किया है आपने!...आभार शिखा जी!

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  8. बहुत सुन्दर पोस्ट.

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