वो शब्द अलंकार
जिन्होंने गढ़ी
प्रेम की परिभाषा
मेरे तुम्हारे बीच
मेरी कल्पना थी
कविता थी
या ...थे तुम
स्वप्नों का ब्रह्मांड
जिसमें पूरक ग्रहों से
करते रहे परिक्रमा
मैं और तुम
मेरी कल्पना है
कविता है
या हो तुम
काल से चुराया एक पल
जिसको पाकर
बढ़ गयी जिजीविषा
मुझमें ... तुम में
मेरी कल्पना है
कविता है
या हो तुम
मेरी कल्पना में तुम हो जाते हो कविता.......है न???
ReplyDeleteबहुत सुन्दर!!
अनु
बहुत उम्दा अभिव्यक्ति ,,,!
ReplyDeleteRECENT POST -: हमने कितना प्यार किया था.
स्वप्नों का ब्रह्माण्ड और मैं-तुम …वाह
ReplyDeleteये कविता ओर तुम से आगे बस प्रेम है ... जिसका एहसास ही काफी है ....
ReplyDeleteबहुत लाजवाब ...
कल 30/10/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद!
बहुत-बहुत आभार
Deleteवाह...अति उत्तम भाव...दीपावली की शुभकामनाएं.....
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