
ये सच ही क्यूँकर.....
दीवारों पे लिखे हों,पर
पढने में नहीं आते हैं.
ये सच ही क्यूँकर
अनपढ़ होते हैं.
सम्मुख हो कर भी ये
दृष्टि में नहीं समाते हैं.
ये सच ही क्यूँकर
ओझल होते हैं.
कानों में पड़ते सीसे से
मौन मगर रह जाते हैं.
ये सच ही क्यूँकर
गूंगे होते हैं.
अंतस कर जाते छलनी
असत्य ओढ़ जब आते हैं.
ये सच ही क्यूँकर
नादां होते हैं.
अंतस कर जाते छलनी
ReplyDeleteअसत्य ओढ़ जब आते हैं.
ये सच ही क्यूँकर
नादां होते हैं.,,,
लाजबाब बेहतरीन रचना,,,,
Recent Post: कुछ तरस खाइये
रचना पर आपका कमेन्ट पढ़कर बहुत ख़ुशी हुई ......ढेर सारा शुक्रिया
Deleteमैं आपकी रचना पर पहले भी आ चुकी हूँ ...और कुछ लिखा भी है ... जरुर :)
शिखा जी बहुत मन से लिखी है आपने यह रचना गहन भाव पिरोयें हैं .
ReplyDeleteबहुत-बहुत शुक्रिया ....
Delete
ReplyDeleteदिनांक 28 /02/2013 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .
धन्यवाद!
मुझे ये जानकार बहुत ही प्रसन्नता हो रही है कि आपको मेरी ये रचना उपरोक्त ब्लॉग पर प्रकाशित करने योग्य लगी। बहुत-बहुत शुक्रिया ......
Deleteआपके ब्लॉग पर अपनी रचना देख कर बहुत ख़ुशी हुई .....बहुत सारा धन्यवाद
Deleteकानों में पड़ते सीसे से
ReplyDeleteमौन मगर रह जाते हैं.
ये सच ही क्यूँकर
गूंगे होते हैं.------jeevan ko aandolit kartey shabd
sarthak rachna badhai
बहुत-बहुत शुक्रिया .....
Deleteअंतस कर जाते छलनी
ReplyDeleteअसत्य ओढ़ जब आते हैं.
ये सच ही क्यूँकर
नादां होते हैं.,,,
बहुत ही बेहतरीन पंक्तियाँ है...
बहुत सुन्दर रचना....
बहुत-बहुत शुक्रिया .....
Deleteसम्मुख हो कर भी ये
ReplyDeleteदृष्टि में नहीं समाते हैं.
ये सच ही क्यूँकर
ओझल होते हैं.
बहुत ही बेहतरीन रचना
गहरे सधे हुए भाव
ReplyDeleteबहुत-बहुत शुक्रिया .....
DeleteBahut achcha laga padhke - yeh aur baaki bhi blog pe... saalon se hindi mein kuch zyada nahin padha aur in kavitaon mein soch gehri hai lekin phir bhi padhne mein saral hain :-).
ReplyDeleteThanks dear.... :)
Deleteबहुत उम्दा ..भाव पूर्ण रचना .. प्रेम को तो प्रेम ही समझ सकता है प्रेम से तो काली रात में भी उजाले का अहसास होता है
ReplyDeleteआज की मेरी नई रचना जो आपकी प्रतिक्रिया का इंतजार कर रही है
ये कैसी मोहब्बत है
बहुत-बहुत शुक्रिया .....
Deleteबहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति ...
ReplyDeleteआप भी पधारें
ये रिश्ते ...
बहुत-बहुत शुक्रिया .....
Deleteबेहतरीन रचना
ReplyDeleteबहुत-बहुत शुक्रिया .....
Deleteएक अनुत्तरित स प्रश्न ..... बहुत सुन्दर!
ReplyDeleteबेहतरीन रचना
ReplyDeleteशिखा जी, दिल से लिखी गई आपकी कविताएं कुछ अलग पहचान बनाने वालीं हैं । भाव व शब्द बेहतरीन हैं । बस थोडा सा तराशने की जरूरत है ।
ReplyDeleteशिखा जी, दिल से लिखी गई आपकी कविताएं कुछ अलग पहचान बनाने वालीं हैं । भाव व शब्द बेहतरीन हैं । बस थोडा सा तराशने की जरूरत है ।
ReplyDeleteसम्मुख हो कर भी ये
ReplyDeleteदृष्टि में नहीं समाते हैं.
ये सच ही क्यूँकर
ओझल होते हैं.
बहुत सुन्दर सार्थक रचना ! ये सत्य असत्य की भूलभुलैया ही तो हमें भ्रमित किये रहती है ! बहुत अच्छी रचना ! शुभकामनाएं !
सच .... गूंगे लगते हैं,आत्मा के अन्दर हाहाकार करते हैं ..... बहुत अजीब स्थिति होती है सच की
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखा है.
ReplyDeleteशिखा जी ,
ReplyDeleteसच को कोई पढना नहीं चाहता इसी लिए अनपढ़ रह जाते हैं .... बहुत गहन भाव लिए सुन्दर अभिव्यक्ति .
मेरे ब्लॉग पर आने का शुक्रिया
bahut acha likha hai...shikha...satya hamesha peeche hi reh jata hai...aur jab aage aata hai to uska roop badal jata hai...jo hamesha dukhi hi karta hai..
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