मेरे तुम्हारे संबंधों की
क्यूँ सदा पृथक रही धुरी
जो तुम रहे सदा से तुम
मात्र मेरे लिये ही क्यूँ
लक्ष्मण-रेखित परिधि विषम
स्वीकृत थी जब जानकी
अग्नि-परीक्षा क्यूँ रची
कैसी प्रीत की रागिनी
मेरे तुम्हारे संबंधों की
क्यूँ सदा पृथक रही धुरी
नदिया की जल-धारा से
नव-जीवन सोपान चढ़ा
पाकर जल तुम मेघ बने
जग-जीवन संचार किया
हरीतिमा तो समेट ली
मरूभूमि क्यूँ रीती खड़ी
मेरे तुम्हारे संबंधों की
क्यूँ सदा पृथक रही धुरी
स्वयं विज्ञापित जलधि तुम
हृदय विशाल सम दीखते
चन्द्र का फिर रूप धारे
स्वयं पर इतराते फिरे
सरित-समागम करके भी
क्यूँ ना तनिक मिठास भरी
मेरे तुम्हारे संबंधों की
क्यूँ सदा पृथक रही धुरी
क्यूँ सदा पृथक रही धुरी
जो तुम रहे सदा से तुम
मात्र मेरे लिये ही क्यूँ
लक्ष्मण-रेखित परिधि विषम
स्वीकृत थी जब जानकी
अग्नि-परीक्षा क्यूँ रची
कैसी प्रीत की रागिनी
मेरे तुम्हारे संबंधों की
क्यूँ सदा पृथक रही धुरी
नदिया की जल-धारा से
नव-जीवन सोपान चढ़ा
पाकर जल तुम मेघ बने
जग-जीवन संचार किया
हरीतिमा तो समेट ली
मरूभूमि क्यूँ रीती खड़ी
मेरे तुम्हारे संबंधों की
क्यूँ सदा पृथक रही धुरी
स्वयं विज्ञापित जलधि तुम
हृदय विशाल सम दीखते
चन्द्र का फिर रूप धारे
स्वयं पर इतराते फिरे
सरित-समागम करके भी
क्यूँ ना तनिक मिठास भरी
मेरे तुम्हारे संबंधों की
क्यूँ सदा पृथक रही धुरी
आपकी लिखी रचना बुधवार 12 मार्च 2014 को लिंक की जाएगी...............
ReplyDeletehttp://nayi-purani-halchal.blogspot.in
आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
इस सम्मान के लिये दिल से आभारी आपकी .....
Deleteये तो आज भी ज्वलंत प्रश्न है......
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना.....
इस धुरी के मिलन के लिए त्याग करना होता है .. निस्वार्थ प्रेम जो करना होता है ..
ReplyDeleteभावपूर्ण अभिव्यक्ति ...
कुछ अनुत्तरित प्रश्न..... भावपूर्ण ....सुन्दर रचना
ReplyDeleteजीवन को अर्थ देती सार्थक पोस्ट
ReplyDeleteभावपूर्ण अभिव्यक्ति ......कुछ प्रश्न पूछती रचना .....कोई जवाब दे शायद
ReplyDeleteसंबंधो का रेखा गणित ........ बहुत सुंदर :)
ReplyDeleteबहुत सुंदर ।
ReplyDeleteशाश्वत प्रश्न .....!!!!..सुन्दर अभिव्यक्ति .....!!!
ReplyDeleteवाह....
ReplyDeleteबेहद सुन्दर कविता....
ये पृथक धुरियाँ ही तो करीब आने से रोकती हैं.....
भावपूर्ण!!!
अनु
सारे प्रश्न बहुत सही ढंग से कहा है आपने. रामायण का उत्तर काण्ड पढता हूँ तो यही जान पाता हूँ की कितना बड़ा अनर्थ हुआ था.
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