कब से पड़ी थी चौखट पे
नैनन में थी समाये रही
आ थोडा तुझे निचोड़ लूँ
अरी !बच के कहाँ जायेगी
करती है मुझसे दिल्लगी
नये खेल काहे रचाय री
धर लूँगी बैया आज तो
अरी !बच के कहाँ जायेगी
कूक-कूक मन को रिझाये
फुदके है ज्यूँ मुनिया कोई
ले पंख तेरे मैं भी उड़ूँ
अरी !बच के कहाँ जायेगी
Kya khoob likhti hai aap, kamal hai.
ReplyDeleteबहुत प्यारी कविता......यादों से बच पाना मुश्किल...
ReplyDeleteअनु
मधुर ... कोमल एहसास लिए भाव पूर्ण रचना ...
ReplyDeleteBEAUTIFUL LINES WITH GREAT EMOTIONS
ReplyDeleteप्यारी यादों के तो बस ऐसे ही बाँध कर रखने का मन होता है. बहुत सुन्दर रचना.
ReplyDeleteसुन्दर यादों के एहसास को खूबसूरती से शब्दों में पिरोया है .. सुन्दर कविता ..
ReplyDeleteखूबसूरत रचना......!!
ReplyDeleteयादें जेहन में घर बना लेते हैं
अहा ! कितना सुन्दर लिखा है..
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