सितारे जड़े आँचल में
चाँद सा चेहरा किया
और अन्तरिक्ष की डोर
थमा दी मेरे हाथ
अब घिरी हूँ मैं ग्रहों से
अपनी धुरी पे नाचती
न भीतर न बाहर
परिधि की लकीर भर
....दुनिया मेरे पास
नहीं ...बेवजह न था
सनद में लिखना तुम्हारा
आकाश मेरे नाम
चाँद सा चेहरा किया
और अन्तरिक्ष की डोर
थमा दी मेरे हाथ
अब घिरी हूँ मैं ग्रहों से
अपनी धुरी पे नाचती
न भीतर न बाहर
परिधि की लकीर भर
....दुनिया मेरे पास
नहीं ...बेवजह न था
सनद में लिखना तुम्हारा
आकाश मेरे नाम
वाह...क्या खूबसूरत ख़याल है।
ReplyDeleteबेहद सुन्दर कविता.....
ReplyDeleteगहरे एहसास लिए...
बहुत खूब शिखा जी.
अनु
ReplyDeleteवाह बहुत सुंदर अहसास
उत्कृष्ट प्रस्तुति
आग्रह है मेरे ब्लॉग में भी पधारें
कब तलक बैठें---
Bahut khoob ...
ReplyDeleteSury bhi to dhuri hai is antariksh ki ... Bhav may rachna ...
क्या बात है .... बहुत खूब
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteसादर
दीदी वाह मज़ा आ गया।
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना...
ReplyDeletepyari si kavita.... gahre ahsaas..:)
ReplyDeleteयह सनद प्रभावशाली लगती है शिखा जी ...
ReplyDeleteबधाई !
बहुत सुंदर अहसास
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति. आकाश सी फैली कल्पना
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