यूँ आईने से मुलाक़ात किया करो
कभी खुद को भी यारा जिया करो
ज़िन्दगी के सफर में बिछड़े कई
कभी नाम उनका भी लिया करो
रूठों को मनाना नामुमकिन नहीं
कभी सब्र के जाम पिया करो
न रहो अपने ही उजालों में ग़ुम
अँधेरों को भी रोशन किया करो
मौत के इंतज़ार में बेज़ार हो क्यूँ
ज़िन्दगी को एहतराम दिया करो
ढूंढते हो दैर-ओ-हरम में सुकूं
क्यूँ न गैरों के ज़ख्म सिया करो
वाह ... बहुत ही गहरा और खुबसूरती से ख्याल को सजाया है आपने हर शेर में ....
ReplyDeleteबहुत खुब ! आपकी सारी रचनायें बहुत प्रशंसनीय के साथ साथ कुछ ना कुछ सीखती हैं ...
हर्दय से नमन** आपकी अभिव्यक्ती को !
सार्थक लेखन !
सादर
: अनुराग त्रिवेदी एहसास
बहुत बढ़िया,उम्दा गजल !!!
ReplyDeleteRecent post: तुम्हारा चेहरा ,
न रहो अपने ही उजालों में ग़ुम
ReplyDeleteअँधेरों को भी रोशन किया करो
सुन्दर पंक्ति
खुश कीत्ता
न रहो अपने ही उजालों में ग़ुम
ReplyDeleteअँधेरों को भी रोशन किया करो
बहुत खूब, सुन्दर !
न रहो अपने ही उजालों में ग़ुम
ReplyDeleteअँधेरों को भी रोशन किया करो
हर शेर खूबसूरत भाव से सजा ....
बधाई एवं शुभकामनाएं ...
यूँ आईने से मुलाक़ात किया करो
ReplyDeleteकभी खुद को भी यारा जिया करो.
सुंदर भाव सुंदर प्रस्तुति.
नमस्कार
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार (29-04-2013) के चर्चा मंच अपनी प्रतिक्रिया के लिए पधारें
सूचनार्थ
khubsoorat ehsas
ReplyDeleteहर शेअर खुबसूरत भाव लिए है !
ReplyDeleteडैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
latest postजीवन संध्या
latest post परम्परा
वाह...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया ग़ज़ल....
अनु
वाह बहुत खूब रचना
ReplyDeleteसुंदर
बधाई
आग्रह है पढ़ें "अम्मा"
http://jyoti-khare.blogspot.in
सब शेर लाजवाब, जीवन को सार्थक रूप से जीने की प्रेरणा देते हुए
ReplyDeletebehad umda ...
ReplyDelete