Saturday, 27 April 2013
आईने से मुलाक़ात ...
यूँ आईने से मुलाक़ात किया करो
Thursday, 25 April 2013
आँसू ...
आँसू ..... एक सैलाब
हदों में उफनता बिलखता
या सेहरा में ....भटका समंदर
पत्थर पे सर पटकना
लहरों का बिखरना
सब है देखा-भाला
वेदना ....सुलगी लकड़ी
भीगे ख्यालों से नम
न जलती है ...न बुझ पाती
गीली लकड़ी का जलना
पल-पल सुलगना
सब है देखा-भाला
हदों में उफनता बिलखता
या सेहरा में ....भटका समंदर
पत्थर पे सर पटकना
लहरों का बिखरना
सब है देखा-भाला
वेदना ....सुलगी लकड़ी
भीगे ख्यालों से नम
न जलती है ...न बुझ पाती
गीली लकड़ी का जलना
पल-पल सुलगना
सब है देखा-भाला
दिलासा ....महीन शब्द
महज़ एक उलझन
सुलझाओ तो ...हो जाते हैं तार-तार
अर्थ हो गये हैं ग़ुम
रिश्तों का चेहरा
सब है देखा-भाला
Sunday, 7 April 2013
धूप का पुर्ज़ा
छप्पर की दरारों से ....
चुपचाप झांकता आया था
नंगे पाँव फर्श पे बैठा उकडूं
फिर थककर ...
खाट पे उंघियाया था
रेंगा था कुछ दूर तलक भी
दीवारों के साये-साये
कस कर थामे रहा जिगर
फिसलन कोई आये-जाये
बिन कोयला दहकाए भाँडे
फूटी हांड़ी घिसी परात
गोया पकी रसोई में
बची रही कोयले की आंच
आधी खुली सुराही पे
लटका था कुछ देर तलक
बूंद-बूंद बतियाया जैसे
सागर पीता पलक-पलक
एक धूप का पुर्ज़ा कल
अपनी निशानी छोड़ गया
सीली हुई दीवारों पर
उजली कहानी छोड़ गया
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