स्वच्छ श्वेताकाश में बदलियाँ
किसे चल रहीं पुकारती
बूँदें ....आसमान से टपक
रह जातीं अधर में लटकी
दूर ....चटख रंगों का इंद्र-धनुष
कानों में गूँजती कोयल की कूक ....
शायद वही .....नहीं ....पता नहीं !!
मखमली घास के बिस्तर पर चुभन सी
रंगीन पंखुड़ियाँ ....दूर हैं ?....पास हैं ?
क्यूँ है उलझन सी ???
बह जाने की चाहत
और हवा इतनी मद्धम
कुछ घुटन ...कुछ बेचैनी
नाड़ियों में थमने लगी है ...
तरसी आँखों की नमी
जाने फरिश्तों की क्या है मर्ज़ी !!
समीप खड़ा बाहें पसारे
जीवन का अवसान
संग ले आया है ...स्वर्ग की सीढ़ी
फिर भी ....प्रतीक्षित नयन द्वार पे
आता होगा तारनहार
चख लूँ ज़रा ...अंतिम बार
इन आँखों से ...ममता की नमी
ओह !
क्या रहेगी ये प्रतीक्षा भी निहारती
...अनंत की ठगनी
किसे चल रहीं पुकारती
बूँदें ....आसमान से टपक
रह जातीं अधर में लटकी
दूर ....चटख रंगों का इंद्र-धनुष
कानों में गूँजती कोयल की कूक ....
शायद वही .....नहीं ....पता नहीं !!
मखमली घास के बिस्तर पर चुभन सी
रंगीन पंखुड़ियाँ ....दूर हैं ?....पास हैं ?
क्यूँ है उलझन सी ???
बह जाने की चाहत
और हवा इतनी मद्धम
कुछ घुटन ...कुछ बेचैनी
नाड़ियों में थमने लगी है ...
तरसी आँखों की नमी
जाने फरिश्तों की क्या है मर्ज़ी !!
समीप खड़ा बाहें पसारे
जीवन का अवसान
संग ले आया है ...स्वर्ग की सीढ़ी
फिर भी ....प्रतीक्षित नयन द्वार पे
आता होगा तारनहार
चख लूँ ज़रा ...अंतिम बार
इन आँखों से ...ममता की नमी
ओह !
क्या रहेगी ये प्रतीक्षा भी निहारती
...अनंत की ठगनी
अहा.....बहुत सुन्दर शिखा जी...
ReplyDeleteलाजवाब!!
अनु
वाह !!! बहुत सुंदर उम्दा पोस्ट ,,,शिखा जी,बधाई,,,
ReplyDeleteRECENT POST : जिन्दगी.
बहुत सुंदर.. शिखा जी!
ReplyDelete~अनिता
वाह! सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeletelatest post नेता उवाच !!!
latest post नेताजी सुनिए !!!
बेहद खूबसूरत ... मन में इन्द्रधनुष सा खिल गया ...पर साथ साथ काले बादल भी उमड़ते घुमड़ते रहे ...व्याकुल मन का बहुत सुन्दर चित्र खींचा शिखा आपने !!! बधाई हो आपको बहुत बहुत
ReplyDeleteआह... वाह... सहज कह गई दोनों. बहुत भावुक और मार्मिक रचना. बधाई.
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर ... इन्द्रधनुषी रंग जैसे शब्द बन कर बाहर आ गए हों ...
ReplyDeleteभावपूर्ण रचना ...
सुन्दर रंगीन छटा लिये
ReplyDeleteशिखा : ...!! ढेर सारी बधाईयां....बहुत अंतर पटल का मंच. शब्द को गोंद कर बना दिया शिल्प...!! कथन और कथ्य अनूठे-- अनूठी तराह... वो दिन दूर नही जब हम लोग कहेंगे-- : अरे हाँ यह शिखा तो हमारे ग्रुप में लिखा करते थे--- :) :) :)
ReplyDeleteआशा है आखिर...अवसान कैसे हो...अति सुन्दर रचना.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रंग बिखेरा है जो प्रतीक्षा जीवन के अवसान तक तटस्थ बनी रहे उसकी पीड़ा और व्यग्रता का बहुत भावपूर्वक वर्णन किया है आपने ..
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना ....
ReplyDeletebahut badhiya
ReplyDeletespeachless...........!
ReplyDeleteबहुत भावुक और मार्मिक रचना.....बेहद खूबसूरत
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