यूँ आईने से मुलाक़ात किया करो
कभी खुद को भी यारा जिया करो
ज़िन्दगी के सफर में बिछड़े कई
कभी नाम उनका भी लिया करो
रूठों को मनाना नामुमकिन नहीं
कभी सब्र के जाम पिया करो
न रहो अपने ही उजालों में ग़ुम
अँधेरों को भी रोशन किया करो
मौत के इंतज़ार में बेज़ार हो क्यूँ
ज़िन्दगी को एहतराम दिया करो
ढूंढते हो दैर-ओ-हरम में सुकूं
क्यूँ न गैरों के ज़ख्म सिया करो
बहुत सुन्दर रचना है शिखा ...दूसरो के दर्द बांटना ही जिंदगी है ... ब्लॉग के लिए बधाई :-)
ReplyDeleteबहुत-बहुत शुक्रिया ,,,ब्लॉग की रचना में आपका सहयोग बहुत सहायक रहा ..............आगे भी यूँ ही तंग करती रहूंगी ...निश्चिन्त रहें :)
ReplyDeleteवाह ! क्या बात है, आखिर मेरी प्रिय कवयित्री की कविताओं को एक स्थायी पता मिला गया. बहुत बहुत बधाई, और हाँ आपकी कविता तो हर बार की तरह सुभानल्लाह.
ReplyDeleteसादर
नीरज'नीर'
शुक्रिया नीरज ...आप जितने
ReplyDeleteबढिया रचनाकार हैं उतनि ही सहृदयता से कमेन्ट भी देते हैं .....बहुत-बहुत शुक्रिया
bahut sunder shikha ...bahut achi gazal likhi hai ...
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