लोमड़ की टोली ने जम कर शिकार किया
माँस इकठ्ठा कर दावतें उड़ायीं
लहू के रंगों से आतिश सजायी
जो जी भर गया तो
कुछ निशानियाँ रख लीं जश्न की
और पूँछ फटकारते
फेंक दिये माँस के लोथड़े सड़ने के लिये
उनके साथ चले आये थे
खून सने पंजों के निशान
उनके दाँतों में अभी भी
कुछ टुकड़े माँस अटका रहा था
सड़ांध से उठती तेज़ गंध
पूरे जंगल पर मंडराने लगी
जंगल चीत्कार उठा
लोमड़ों की तलाशी हुई
और कील ठोंक दी गयीं उनकी पूँछ में
दोष किसका है ...
स्याना लोमड़ बता रहा है
कि अकसर दावत उड़ाता रहा
शिकार खुद लोमड़ के साथ
अब ...
सारे लोमड़ एकजुट किये जा रहे हैं
जंगल के खिलाफ
जंगल-राज नहीं चलने दे सकते वो
कोई कुछ भी कहे
शिकार तो होना ही चाहिये
ये अधिकार का सवाल है