
ये सच ही क्यूँकर.....
दीवारों पे लिखे हों,पर
पढने में नहीं आते हैं.
ये सच ही क्यूँकर
अनपढ़ होते हैं.
सम्मुख हो कर भी ये
दृष्टि में नहीं समाते हैं.
ये सच ही क्यूँकर
ओझल होते हैं.
कानों में पड़ते सीसे से
मौन मगर रह जाते हैं.
ये सच ही क्यूँकर
गूंगे होते हैं.
अंतस कर जाते छलनी
असत्य ओढ़ जब आते हैं.
ये सच ही क्यूँकर
नादां होते हैं.